शाम को जब तेरे दर पे आता हूँ तो दिन भर की थकान भुल जाता हूँ
धड़कन काशी हो जाती है, जब साँसे प्यासी हो जाती है, निगाहों में उज्जैन झलकता है, जब आत्मा संन्यासी हो जाती है
नर मुंडी कंकाल की, सर पे जटा सजाय चिलम का धुआँ गले में समेटे राख से अघोर नहाय हर हर महादेव
तुम्हे भूलकर हम करें भी तो क्या इकलौते शौक हो तुम मेरी जिंदगी के
छोड़ दी दुनिया की परवाह जब से महादेव को जाना है क्या करना इस मतलबी दुनिया का जब अंत में महादेव को ही पाना है हर हर महादेव…
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